*यूनिसेफ की फ्लैगशिप रिपोर्ट का नया डेटा कोविड-19 महामारी होने पर बाल टीकाकरण के प्रति भरोसे में बड़े पैमाने पर आई गिरावट के बीच भारत की टीकों के प्रति भरोसे में वृद्वि पर रोशनी डालता है।*

यूनिसेफ की रिपोर्ट दर्शाती है कि भारत उन 3 देशों में से एक है, जिन 55 देशों में सर्वे किया गया, जहां बाल टीकाकरण के प्रति भरोसा बढ़ा है।

20 अप्रैल 2023
एक महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता ने नौ महीने से 15 साल के बीच के बच्चों के टीकाकरण अभियान के दौरान 10 महीने के बच्चे को खसरा रूबेला का टीका लगाया। टीकाकरण सत्र हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के करसोग डाकघर केलोधर गांव स्थित आंगनबाड़ी केंद्र में हुआ।
UNICEF/UN0125826/Sharma
एक महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता ने नौ महीने से 15 साल के बीच के बच्चों के टीकाकरण अभियान के दौरान 10 महीने के बच्चे को खसरा रूबेला का टीका लगाया। टीकाकरण सत्र हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के करसोग डाकघर केलोधर गांव स्थित आंगनबाड़ी केंद्र में हुआ।

नई दिल्ली, 20 अप्रैल 2023-यूनिसेफ इंडिया ने आज एंजेसी की वैश्विक फ्लैगशिप रिपोर्ट ‘ द स्टेट ऑफ द वर्ल्डस चिल्ड्रन 2023ः फॉर एवरी चाइल्ड, वैक्सीनेशन जारी की, जिसमें बाल टीकाकरण के महत्व पर रोशनी डाली गई है।  

द वैक्सीन कोन्फीडेंस प्रोजेक्ट के द्वारा संग्रहित डेटा पर आधारित ( लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन और ट्रापिकल मेडिसिन) और यूनिसेफ द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट खुलासा करती है कि बाल टीकाकरण के महत्व बावत लोकप्रिय धारणा केवल चीन, भारत और मैक्सिको में मजबूत बनी रही या इसमें सुधार हुआ।

जबकि जिन देशों में अध्ययन किया गया, उनमें से एक तिहाई देशों में महामारी की शुरूआत के बाद टीकों के प्रति विश्वास में आई गिरावट के बारे में बताती है-रिपब्लिक ऑफ कोरिया, पापुआ न्यू गिनी, घाना, सेनेगल और जापान। यह रिपोर्ट भ्रामक सूचना तक पहुंच और टीके के प्रभाव संबधित विश्वास में आई गिरावट सरीखे कारकों के कारण टीके के प्रति संदेह बावत बढ़ते खतरे को लेकर आगाह करती है।

टीके पर भरोसे में दुनियाभर में यह गिरावट, बीते 30 सालों में बाल टीकाकरण में सबसे बड़ी निरंतर गिरावट के बीच आई है, कोविड-19 महामारी ने इस स्थिति को और खराब किया है। महामारी ने लगभग हर जगह बाल टीकाकरण को प्रभावित किया, विशेष तौर पर यह स्वास्थ्य प्रणाली पर अत्याधिक मांग, टीकाकरण संसाधनों को कोविड-19 टीकाकरण के लिए मोड़ने, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की कमी और स्टे ऐट होम आदि कदमों के कारण हुआ।

यूनिसेफ इंडिया की प्रतिनिधि सिंथिया मेककेफरी ने कहा,‘ द स्टेट ऑफ द वर्ल्डस चिल्ड्रन रिपोर्ट भारत को विश्व के उन देशों में से एक देश के रूप में प्रस्तुत करती है जहां टीके के प्रति सबसे अधिक विश्वास है। यह भारत सरकार की राजनीतिक व सामाजिक प्रतिबद्वता की पहचान है और यह दर्शाता है कि महामारी के दौरान सबसे बड़ी वैक्सीन ड्राइव भरोसा बनाने और प्रत्येक बच्चे को टीका लगाने के लिए नियमित टीकाकरण के वास्ते व्यवस्था को सुदृढ़ करने में सफल हुई है।’

मेककेफरी ने यह भी जोड़ा,‘ टीकाकरण मानवता की सबसे उल्लेखनीय सफल कहानियों में से एक है, यह बच्चों को स्वस्थ जिंदगी जीने और समाज में योगदान की अनुमति देता है। टीकाकरण के साथ आखिरी बच्चे तक पहुंचना समान हिस्से का अहम चिहृन है, जिसमें सिर्फ बच्चे को ही लाभ नहीं होता बल्कि सारा समुदाय लाभान्वित होता है। नियमित टीकाकरण और मजबूत स्वास्थ्य व्यवस्था हमें भावी महामारियों को रोकने और रोगों व मृत्यु को कम करने में अच्छी तरह से तैयार कर सकती है।’

यूनिसेफ की रिपोर्ट आगाह करती है कि 2019 व 2021 के दरम्यान 6.7 करोड़ बच्चे टीकाकरण से छूट गए, 112 देशों में टीकाकरण कवरेज स्तर में कमी आई। उदाहरण के तौर पर, 2022 में, पिछले वर्ष खसरा के कुल मामलों की तुलना में खसरा के मामलों में दोगुणा से भी अधिक मामले पाए गए। 2022 में पोलियो से लकवाग्रस्त बच्चों की संख्या 16 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। 2019-2021 के साथ तुलना की जाए तो बीते तीन साल की अवधि में पोलियो से लकवाग्रस्त हुए बच्चों की संख्या में आठ गुणा बढ़ोतरी हुई, यह इस टीकाकरण के प्रयासों की निरंतरता बनी रहे, इसे सुनिश्चित करने के महत्व पर रोशनी डालते हैं।

ज़ीरो डोज (जिन तक पहुंचा नहीं गया या जो छूट गए) बच्चों की संख्या बढ़कर 30 लाख होने के बावजूद, 2020-2021 के बीच-महामारी के दौरान, भारत टीकाकरण में सुधार करते हुए इस संख्या को कम करते हुए 27 लाख तक ले आया, जोकि भारत में पांच वर्ष की आयु के बच्चों की आबादी और विश्व में सबसे अधिक जन्म समूह के छोटे अनुपात का प्रतिनिधित्व करती है।

इस उपलब्धि के लिए भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए, निरंतर, साक्ष्य आधारित कैप अप अभियान को जिम्मदार ठहराया जा सकता है, जिसमें सघन मिशन इंद्रधनुष (आईएमआई), विस्तृत प्राथमिक स्वास्थ्य देख सेवाओं के प्रावधान का जारी रहना, एक मजबूत नियमित टीकाकरण कार्यक्रम और समर्पित स्वास्थ्य कार्यकर्तां शमिल हैं। अंतिम छोर व अंतिम बच्चे तक पहुंचने के लिए प्रगति जारी है।

महामारी ने मौजूदा असमानताओं को भी बढ़ाया है। बहुत से बच्चों के लिए, विशेषतौर पर सबसे अधिक हाशिए के समुदायों में, टीकाकरण अभी भी उपलब्ध नहीं है, उस तक पहुंच नहीं है या किफायती नहीं है। यहां तक कि महामारी से पहले भी , लगभग एक दशक तक टीकाकरण में प्रगति रूकी हुई थी क्योंकि विश्व ने सबसे अधिक हाशिए के बच्चों तक पहुंचने के लिए संघर्ष किया।

इंटरनेशनल सेंटर फॉर इक्विटी इन हेल्थ ने रिपोर्ट के लिए नया डेटा प्रस्तुत किया है, इसमें पाया गया कि सबसे गरीब परिवारों में, 5 में से 1 बच्चा ज़ीरो डोज वाला है जबकि सबसे अमीर में यह संख्या महज 20 में 1 है। इसने यह भी पाया कि जिन बच्चों की टीकाकरण नहीं हुआ है, वे अक्सर ऐसे समुदायों से आते हैं जहां पहुंचना बहुत मुश्किल है जैसे कि गा्रमीण इलाके या शहरी बस्तियां।

उनकी मांए अक्सर स्कूल नहीं गई होतीं और जिनकी परिवार में बहुत कम सुनवाई होती है। ये चुनौतियां निम्न व मध्य आय वाले देशों में बहुत हैं, जहां शहरी इलाकों में 10 में से 1 बच्चा ज़ीरो डोज वाला है और ग्रामीण इलाकों में 6 में से 1 बच्चा ऐसा है। उच्च मध्यम आय वाले देशों में शहरी व ग्रामीण बच्चों में यह फासला लगभग नहीं है।

 

 

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